मुंशी प्रेमचंद की जीवनी और विचार: Quotes & Biography of Premchand in Hindi

ुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand):


जीवन परिचय (About Munshi Premchand):

            प्रेमचंद का जन्म वाराणसी से लगभग चार मील दूर, लमही नाम के गांव में 31 जुलाई, 1880 को हुआ। प्रेमचंद के पिताजी मुंशी अजायब लाल और माता आनंदी देवी थी। प्रेमचंद का बचपन गांव में बीता था। प्रेमचंद का कुल दरिद्र कायस्थों का था, जिनके पास करीब छ: बीघा जमीन थी और जिनका परिवार बड़ा था। प्रेमचंद के पितामह, मुंशी गुरुसहाय लाल, पटवारी थे। उनके पिता, मुंशी अजायब लाल, डाकमुंशी थे और उनका वेतन लगभग पच्चीस रुपए मासिक था। उनकी मां आनंद देवी सुन्दर, सुशील और सुघड़ महिला थीं। जब प्रेमचंद पंद्रह वर्ष के थे, उनका विवाह हो गया। वह विवाह उनके सौतेले नाना ने तय किया था। 
 

 

सन् 1905 के अंतिम दिनों में आपने शिवरानी देवी से शादी कर ली। शिवरानी देवी बाल-विधवा थीं। यह कहा जा सकता है कि दूसरी शादी के पश्चात् इनके जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। इनके लेखन में अधिक सजगता आई। प्रेमचंद की पदोन्नति हुई तथा यह स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिए गए।

Quote of Munshi Premchand


साहित्यिक जीवन (Literary Life):

                   प्रेमचंद उनका साहित्यिक नाम था और बहुत वर्षों बाद उन्होंने यह नाम अपनाया था। उनका वास्तविक नाम ‘धनपत राय’ था। जब उन्होंने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना आरंभ किया, तब उन्होंने नवाब राय नाम अपनाया। बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यंत नवाब के नाम से ही संबोधित करते रहे। जब सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, ‘सोजे वतन’ जब्त किया, तब उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा। बाद का उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी काल में प्रेमचंद ने कथा-साहित्य बड़े मनोयोग से पढ़ना शुरू किया। 


 

एक तम्बाकू-विक्रेता की दुकान में उन्होंने कहानियों के अक्षय भंडार, ‘तिलिस्मे होशरूबा’ का पाठ सुना। इस पौराणिक गाथा के लेखक फैजी बताए जाते हैं, जिन्होंने अकबर के मनोरंजन के लिए ये कथाएं लिखी थीं। एक पूरे वर्ष प्रेमचंद ये कहानियां सुनते रहे और इन्हें सुनकर उनकी कल्पना को बड़ी उत्तेजना मिली। कथा साहित्य की अन्य अमूल्य कृतियां भी प्रेमचंद ने पढ़ीं। इनमें ‘सरशार’ की कृतियां और रेनाल्ड की ‘लंदन-रहस्य’ भी थी।


साहित्य की विशेषताएं-

              प्रेमचंद की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। अपनी कहानियों से प्रेमचंद मानव-स्वभाव की आधारभूत महत्ता पर बल देते हैं।
 

 कृतियाँ (Masterpieces):

          प्रेमचंद की कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की, किंतु प्रमुख रूप से वह कथाकार हैं। उन्हें अपने जीवन काल में ही उपन्यास सम्राट की पदवी मिल गई थी।

उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की। जिस युग में प्रेमचंद ने कलम उठाई थी, उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी और न ही विचार और न ही प्रगतिशीलता का कोई मॉडल ही उनके सामने था सिवाय बांग्ला साहित्य के। उस समय बंकिम बाबू थे, शरतचंद्र थे और इसके अलावा टॉलस्टॉय जैसे रुसी साहित्यकार थे। लेकिन होते-होते उन्होंने गोदान जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की जो कि एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है।
 

 

पुरस्कार  (Award):

             मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इसके बरामदे में एक भित्तिलेख है। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहां उनकी एक आवक्षप्रतिमा भी है।

Quote of Munshi Premchand


 

प्रेमचंद की कहानियां और उपन्यास

 

उपन्यास (Novel):

1)     सेवासदन

2)     प्रेमाश्रम

3)     रंगभूमि

4)     निर्मला

5)     कायाकल्प

6)     गबन

7)     कर्मभूमि

8)     गोदान

9)     मंगलसूत्र

कहानियां (Stories):

मुंशी प्रेमचंद द्वारा 118 कहानियों रचना की गई थी (118 Stories of Munshi Premchand):

1)     अन्धेर

2)     अनाथ लड़की

3)     अपनी करनी

4)     अमृत

5)     अलग्योझा

6)     आख़िरी तोहफ़ा

7)     आखिरी मंजिल

8)     आत्म-संगीत

9)     आत्माराम

10)  दो बैल की कथा

11)  आल्हा

12)  इज्जत का खून

13)  इस्तीफा

14)  ईदगाह

15)  ईश्वरीय न्याय [1]

16)  उद्धार

17)  एक ऑंच की कसर

18)  एक्ट्रेस

19)  कप्तान साहब

20)  कर्मों का फल

21)  क्रिकेट मैच

22)  कवच

23)  क़ातिल

24)  कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला

25)  कौशल़

26)  खुदी

27)  गैरत की कटार

28)  गुल्‍ली डण्डा

29)  घमण्ड का पुतला

30)  ज्‍योति

31)  जेल

32)  जुलूस

33)  झांकी

34)  ठाकुर का कुआं

35)  तेंतर

36)  त्रिया-चरित्र

37)  तांगेवाले की बड़

38)  तिरसूल

39)  दण्ड

40)  दुर्गा का मन्दिर

41)  देवी

42)  देवी – एक और कहानी

43)  दूसरी शादी

44)  दिल की रानी

45)  दो सखियाँ

46)  धिक्कार

47)  धिक्कार – एक और कहानी

48)  नेउर

49)  नेकी

50)  नब़ी का नीति-निर्वाह

51)  नरक का मार्ग

52)  नैराश्य

53)  नैराश्य लीला

54)  नशा

55)  नसीहतों का दफ्तर

56)  नाग-पूजा

57)  नादान दोस्त

58)  निर्वासन

59)  पंच परमेश्वर

60)  पत्नी से पति

61)  पुत्र-प्रेम

62)  पैपुजी

63)  प्रतिशोध

64)  प्रेम-सूत्र

65)  पर्वत-यात्रा

66)  प्रायश्चित

67)  परीक्षा

68)  पूस की रात

69)  बैंक का दिवाला

70)  बेटोंवाली विधवा

71)  बड़े घर की बेटी

72)  बड़े बाबू

73)  बड़े भाई साहब

74)  बन्द दरवाजा

75)  बाँका जमींदार

76)  बोहनी

77)  मैकू

78)   मन्त्र

79)  मन्दिर और मस्जिद

80)  मनावन

81)  मुबारक बीमारी

82)  ममता

83)  माँ

84)  माता का ह्रदय

85)  मिलाप

86)  मोटेराम जी शास्त्री

87)  र्स्वग की देवी

88)  राजहठ

89)  राष्ट्र का सेवक

90)  लीला

91)  वफ़ा का ख़जर

92)  वासना की कड़ियॉँ

93)  विजय

94)  विश्वास

95)  शंखनाद

96)  शूद्र

97)  शराब की दुकान

98)  शान्ति

99)   शादी की वजह

100)                   शान्ति

101)                   स्त्री और पुरूष

102)                   स्वर्ग की देवी

103)                   स्वांग

104)                   सभ्यता का रहस्य

105)                   समर यात्रा

106)                   समस्या

107)                   सैलानी बन्दर

108)                   स्‍वामिनी

109)                   सिर्फ एक आवाज

110)                   सोहाग का शव

111)                   सौत

112)                   होली की छुट्टी

113)                   नम क का दरोगा

114)                   गृह-दाह

115)                   सवा सेर गेहूँ नमक कादरोगा

116)                     दूध का दाम

117)                   मुक्तिधन

118)                   कफ़न

 

नाटक (Drama):

1)     संग्राम

2)     कर्बला

3)     प्रेम की वेदी


 प्रेमचंद की अनमोल विचार- Quotes of Munshi Premchand:


💠 क्रोध  में मनुष्य अपने मन की बात कहने के बजाय दूसरों के ह्रदय को ज़्यादा दुखाता है

              ~मुंशीप्रेमचंद

💠 अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती है
                               ~मुंशीप्रेमचंद
💠 भरोसा प्यार करने के लिए पहला कदम है
                                 ~मुंशीप्रेमचंद
💠 संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है
                                 ~मुंशीप्रेमचंद

💠 संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबो, उतना ही दबाते है         

                                 ~मुंशीप्रेमचंद
💠 बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता
                                  ~मुंशीप्रेमचंद

💠 जब किसान के बेटे को गोबर में से बदबू आने लग जाए तो समझ लो कि देश में अकाल पड़ने वाला है
                        ~मुंशीप्रेमचंद

💠 साक्षरता अच्छी चीज है और उससे जीवन की कुछ समस्याएं हल हो जाती है। लेकिन यह समझना कि किसान निरा मुर्ख है, उसके साथ अन्याय करना है
                                     ~मुंशीप्रेमचंद
💠 यह कितनी अनोखी लेकिन यथार्थ बात है कि सोये हुए मनुष्य को जगाने की अपेक्षा जागते हुए मनुष्य को जगाना कठिन है
                                       ~मुंशीप्रेमचंद
💠 सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य-पथ पर अडिग रहते हैं
                                    ~मुंशीप्रेमचंद
💠 कुल की प्रतिष्ठा सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं
                             ~मुंशीप्रेमचंद

💠 क़ानून और हक़-ओ-इंसाफ़ ये सब दौलत के खिलौने हैं
                          ~मुंशीप्रेमचंद

💠 आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है
                            ~मुंशीप्रेमचंद
 
💠 दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है
                        ~मुंशीप्रेमचंद

💠 न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है
                          ~मुंशीप्रेमचंद

💠 सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है
                        ~मुंशीप्रेमचंद


💠 अमीरी की कब्र पर उगी गरीबी बड़ी जहरीली होती है

                      ~मुंशीप्रेमचंद

💠 मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है

                   ~मुंशीप्रेमचंद

💠 जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है

                                 ~मुंशीप्रेमचंद

💠 लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है! जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?

                       ~मुंशीप्रेमचंद

💠 अन्याय होने पर चुप रहना, अन्याय करने के ही समान है

                       ~मुंशीप्रेमचंद



💠 धर्म की कसौटी मानवता है। जिस धर्म में मानवता को प्रधानता दी गयी है, बस उसी धर्म का मैं दास हूँ। कोई देवता हो, नबी या पैगंबर, अगर वह मानवता के विरुद्ध है तो उसे मेरा दूर से ही सलाम है

                       ~मुंशीप्रेमचंद

💠 जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्‍जत और मर्यादा सब ढोंग है

                     ~मुंशीप्रेमचंद

💠 चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएं               

                    ~मुंशीप्रेमचंद   

 

💠 कोई अन्याय केवल इसलिए मान्य नहीं हो सकता कि लोग उसे परम्परा से सहते आये हैं

                                   ~मुंशीप्रेमचंद

💠 राष्‍ट्र के सामने जो समस्याएँ हैं, उनका सम्बन्ध हिन्‍दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई सभी से है। बेकारी से सभी दुखी हैं। दरिद्रता सभी का गला दबाये हुए है। नित नयी-नयी बीमारियाँ पैदा होती जा रही हैं। उसका वार सभी सम्‍प्रदायों पर समान रूप से होता है। 

                  ~मुंशीप्रेमचंद

💠 देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा

                   ~मुंशीप्रेमचंद



💠 प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की

                    ~मुंशीप्रेमचंद



💠 इंसान सब हैं पर, इंसानियत विरलों में मिलती है               

                     ~मुंशीप्रेमचंद            



💠 सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है

                        ~मुंशीप्रेमचंद

 आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है

                        ~मुंशीप्रेमचंद

💠 मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं

                        ~मुंशीप्रेमचंद



💠 मोहब्बत रूह की ख़ुराक है, यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को ज़िंदा कर देती है

                       ~मुंशीप्रेमचंद



💠 विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है

                    ~मुंशीप्रेमचंद

💠 अब सब जने खड़े क्या पछता रहे हो। देख ली अपनी दुर्दशा, या अभी कुछ बाकी है। आज तुमने देख लिया न कि हमारे ऊपर कानून से नहीं, लाठी से राज हो रहा है। आज हम इतने बेशरम हैं कि इतनी दुर्दशा होने पर भी कुछ नहीं बोलते

                       ~मुंशीप्रेमचंद


💠  हमारे यहाँ विवाह का आधार प्रेम और इच्छा पर नहीं, धर्म और कर्तव्य पर रखा गया है। इच्छा चंचल है, क्षण-क्षण में बदलती रहती है। कर्तव्य स्थायी है, उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता 

               ~मुंशीप्रेमचंद         



💠 क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठा है या नहीं। वह मौन को सहन नहीं कर सकता। ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है जो उसकी शस्त्रशाला में न हो, पर मौन वह मन्त्र है जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है

                   ~मुंशीप्रेमचंद

 

💠  मासिक वेतन पूर्णमासी का चाँद है। जो एक दिन दिखाई देता है और घटते ख़त्म हो जाता है

                   ~मुंशीप्रेमचंद

💠 लोग कहते हैं आंदोलन, प्रदर्शन और जुलूस निकालने से क्या होता है ? इससे यह सिद्ध होता है कि हम जीवित है

                        ~मुंशीप्रेमचंद



💠  देह के भीतर इसीलिए आत्मा रखी गई है कि देह उसकी रक्षा करे। इसलिए नहीं कि उसका सर्वनाश कर दे।  

                       ~मुंशीप्रेमचंद

💠  बड़े-बड़े महान संकल्प आवेश में ही जन्म लेते हैं

                    ~मुंशीप्रेमचंद

💠  निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है

                      ~मुंशीप्रेमचंद

 

💠  बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता

                       ~मुंशीप्रेमचंद

 

💠  औरतों को रूप की निन्दा जितनी अप्रिय लगती है, उससे कहीं अधिक अप्रिय पुरूषों को अपने पेट की निन्दा लगती है। 

                        ~मुंशीप्रेमचंद



💠 दु:खी हृदय दुखती हुई आँख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है

                       ~मुंशीप्रेमचंद                    

💠  दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं उसकी दौलत का सम्मान है

                       ~मुंशीप्रेमचंद

 

💠 संतोष-सेतु जब टूट जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है

                      ~मुंशीप्रेमचंद

💠  जो शिक्षा प्रणाली लड़के लड़कियों को सामाजिक बुराई या अन्याय के खिलाफ लड़ना नहीं सिखाती उस शिक्षा प्रणाली में ज़रूर कोई न कोई बुनियादी खराबी है

                               ~मुंशीप्रेमचंद

💠 अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए, तो यह उससे कहीं ज्यादा अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे

                    ~मुंशीप्रेमचंद

💠 साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है

                    ~मुंशीप्रेमचंद

💠  कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य संलग्न में ही चित्त की शांति है

                        ~मुंशीप्रेमचंद

💠  युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी

                         ~मुंशीप्रेमचंद
 
💠 प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है
                     ~मुंशीप्रेमचंद
💠 किसी को भी दूसरों के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं हैं। उपजीवी होना, घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणिमात्र का धर्म है
                      ~मुंशीप्रेमचंद
💠 जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है। उनका सुख छीनने में नहीं
                   ~मुंशीप्रेमचंद
💠  डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है
             ~मुंशीप्रेमचंद
💠  कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है
                ~मुंशीप्रेमचंद
💠 निर्धनता प्रकट करना निर्धन होने से अधिक दुखदायी होता है
                  ~मुंशीप्रेमचंद
💠 आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है
               ~मुंशीप्रेमचंद
💠 जिसकी आत्मा में बल नहीं,अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है
                   ~मुंशीप्रेमचंद
💠 आशा उत्साह की जननी है, आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है
                    ~मुंशीप्रेमचंद
💠 सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है
                  ~मुंशीप्रेमचंद
💠 खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में
                 ~मुंशीप्रेमचंद
💠 यह जमाना चाटुकारिता और सलामी का है तुम विद्या के सागर बने बैठे रहो, कोई सेत भी न पूछेगा
                                   ~मुंशीप्रेमचंद
💠  कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते हैं
               ~मुंशीप्रेमचंद
💠 धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है
                 ~मुंशीप्रेमचंद
💠 सत्य की एक चिंगारी, असत्य के पहाड़ को भस्म कर सकती है
                         ~मुंशीप्रेमचंद
💠  दूसरे के लिए कितना ही मरो, तो भी अपने नहीं होते। पानी तेल में कितना ही मिले, फिर भी अलग ही रहेगा
                      ~मुंशीप्रेमचंद
💠 माँ की 'ममता' और पिता की 'क्षमता' का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है
                          ~मुंशीप्रेमचंद
💠 विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है"

                      ~मुंशीप्रेमचंद



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